छठ पूजा पर निबंध हिंदी में
Chhath puja 2020: छठ पूजा हिन्दू धर्म का एक मुख्य पर्व है इस दिन भगवान सूर्य और छठ माता की पूजा की जाती है | छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ता है | छठ पूजा के दिन श्रद्धालु गंगा नदी के तट पर आकर पवित्र जल में स्नान करते हैं | शास्त्रों के अनुसार ऐसा भी कहा गया है की इस दिन माता छठी(सूर्य की पत्नी) की पूजा होती है | इस पूजा के जरिये हम भगवान सूर्य को धन्यवाद देते हैं और उनसे अपने अच्छे स्वास्थ्य और रोग मुक्त रहने की कामना करते है | आप ये जानकारी हिंदी, इंग्लिश, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के निबंध प्रतियोगिता, कार्यक्रम या निबंध प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|
छठ पूजा पर निबंध हिंदी में
मारे देश में कई त्योहार मनाए जाते हैं। होली और दिवाली की तरह छठ पूजा भी हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस त्योहार में भगवान सूर्य और छठ माता की आराधना की जाती है। मुख्य रूप से यह त्योहार बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इसके अलावा छठ पूजा नेपाल के तराई क्षेत्रों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। हिन्दुओं के अलावा इस्लाम एवं अन्य धर्म के कुछ लोग भी इस त्योहार को पूरी श्रद्धा से मानते हैं। इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक और लोक कथाएं भी प्रचलित हैं। छठ पूजा के महत्व से जुड़ी अन्य जानकारी एवं छठ पूजा पर निबंध यहां से देख सकते हैं।
छठ पूजा पर निबंध 200 वर्ड्स में
लोक आस्था का पर्व छठ हमारे देश में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। छठ पर्व साल में दो बार होता है। पहली बार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को और दूसरी बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। षष्ठी को मनाने के कारण इसका नाम छठ व्रत रखा गया है। दोनों में कार्तिकी छठ ज्यादा प्रचलित है। यह छठ माता की पूजा और सूर्य की उपासना का पर्व है। मुख्य रूप से इस त्योहार को बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में मनाते हैं। धीरे – धीरे यह त्योहार देश के अन्य शहरों में भी प्रचलित हो गया। प्रवासी भारतीयों के साथ यह पर्व विश्वभर में प्रचलित हो गया है। नेपाल और मॉरीशस जैसे देशों में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
इस पर्व में छठ माता की पूजा की जाती है। इसके साथ ही गाय के कच्चे दूध और जल से सूर्य को अर्घ दिया जाता है। चार दीनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय – खाया से होती है। दूसरे दिन खरना किया जाता है। तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ देने की परंपरा है। चौथे यानि आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है।
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छठ पूजा पर निबंध 10 लाइन में
- छठ पूजा लोक आस्था का पर्व है।
- यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है।
- पहली बार चैत्र माह और दूसरी बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाते हैं।
- इस पर्व में छठ माता की पूजा की जाती है।
- भगवान सूर्य को कच्चे दूध और जल से अर्घ दिया जाता है।
- छठ पर्व पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश के अलावा नेपाल और मॉरीशस जैसे देश में भी मनाते हैं।
- यह चार दिनों तक चलने वाला पर्व है।
- छठ का मुख्य प्रसाद गेहूं का आटा और गुड़ से बना ठेकुआ है।
- महिलाएं इस पर्व को पति और संतान की दीर्घायु के लिए करती हैं।
- पुरुष भी मनचाहे फल प्राप्त करने और अपने कार्य में सफलता के लिए छठ का व्रत करते हैं।
छठ पूजा पर निबंध 400 वर्ड्स में
हिन्दुओं के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला है चैती छठ और दूसरा है कार्तिकी छठ। चैती छठ को चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। वहीं कार्तिकी छठ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस पूजा में छठ माता की अराधना और सूर्य को अर्घ देने का विशेष महत्व है। बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश के अलावा देश के अन्य हिस्सों के साथ इसे नेपाल, मॉरीशस एवं अन्य देशों में भी उत्साह पूर्वक मनाया जाता है।
छठ चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इसकी शुरुआत नहाय – खाय से होती है। इस दिन गंगा के पवित्र जल से स्नान कर के खाना बनाया जाता है। इस दिन चने की दाल, लौकी की सब्जी और रोटी का सेवन किया जाता है। नहाय – खाय के बाद खाने में नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है। दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। खरना के दिन व्रत करने वाले लोग प्रसाद बनाते हैं। खरना के प्रसाद में खीर बनाई जाती है। इस खीर में चीनी की जगह गुड़ का प्रयोग किया जाता है। शाम को पूजा के बाद इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। प्रसाद खाने के बाद निर्जला व्रत शुरू होता है। तीसरे दिन नदी किनारे छठ माता की पूजा की जाती है। पूजा के बाद डूबते हुए सूर्य को गाय के दूध और जल से अर्घ दिया जाता है। इसके साथ ही छठ का विशेष प्रसाद ठेकुआ और फल चढ़ाया जाता है। इस त्योहार के आखिरी दिन सूर्य के उगते ही सभी के चेहरे खिल उठते हैं। व्रत करने वाले पुरुष और महिलाओं के द्वारा उगते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है। सूर्य को अर्घ देने के बाद व्रत करने वाले लोग प्रसाद खा कर अपना व्रत खोलते हैं। इसके बाद सभी लोगों में प्रसाद बांट कर पूजा संपन्न की जाती है।
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छठ का व्रत किसी कठिन तपस्या से कम नहीं है। छठ पर्व पति और संतान की दीर्घायु के लिए किया जता है। मान्यताओं के अनुसार सच्चे मन से छठ व्रत करने पर सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसी मान्यता है की छठ पर्व पर व्रत रखने वाली महिलाओं को पुत्र की प्राप्ति होती है। महिलाओं के साथ पुरुष भी अपने कार्य की सफलता और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करते हैं।
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सूर्य पुत्र कर्ण घंटों पानी में खड़े हो कर सूर्य को अर्घ देते थे। कुछ कथाओं के अनुसार अपने प्रियजनों की लम्बी उम्र की कामना के लिए द्रौपदी भी नियनित सूर्य की अराधना करती थी। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लंका विजय के बाद भगवान राम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक माह में शुल्क पक्ष की षष्ठी को सूर्य की पूजा की। पुराणों के अनुसार राजा प्रियवद ने पुत्र की प्राप्ति के लिए छठ का व्रत किया था।
Essay on chhath puja 500 words
छठ पूजा हिंदू धर्म का प्राचीन त्योहार है जो सूर्य भगवान को समर्पित है। छठ त्योहार का वास्तविक उत्पत्ति ज्ञात नहीं है। पुराने दिनों में पुरोहितों से अनुरोध था कि वे भगवान सूर्य की पारंपरिक पूजा करते हैं, राजाओं द्वारा। प्राचीन ऋग्वेद ग्रंथों और सूर्य की पूजा के लिए विभिन्न प्रकार के भजन थे। द्रौपदी और पांडव ने अपनी समस्याओं को सुलझाने और अपने खो राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए छठ त्योहार मनाया। यह माना जाता है कि छठ पूजा पहली बार सूर्य पिता कर्ण द्वारा की गई थी। एक और कहानी यह है कि, भगवान राम और सीता ने 14 साल के निर्वासन के बाद अयोध्या लौटने के तुरंत बाद छठ पूजा की। उन्होंने उपवास किया और कार्तिक महीने में भगवान सूर्य को पूजा की। उसके बाद यह महत्वपूर्ण और पारंपरिक हिंदू त्योहार बन गया। उत्तर पूर्व राज्यों सहित उत्तर भारत में छठ प्रमुख रूप से मनाया जाता है। यह नेपाल के कुछ हिस्सों में विस्तृत रूप से मनाया जाता है यह मॉरीशस, गुयाना, फिजी, त्रिनिडाड और टोबैगो सूरीनाम और जमैका में भी मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ला शशथी पर छत पूजा मनाई जाती है, जो नेपाली कैलेंडर में कार्तिक महीने का छठा दिन है। यह आमतौर पर अंग्रेजी कैलेंडर में अक्टूबर / नवंबर के महीने में आता है। होति के कुछ दिनों बाद चैती छथ का उत्सव मनाया जाता है, लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं है। यह विश्वास है कि यदि कोई परिवार छत पूजा करता है, तो उन्हें हर साल प्रदर्शन करना चाहिए और अगली पीढ़ियों को भी पूजा करना चाहिए। यह वास्तविक आत्मा में चार दिनों के लिए किया जाता है और किसी कंबल के बिना फर्श पर सोना चाहिए। पहले दिन भक्त गंगा नदी में स्नान करते हैं, और प्रसाद तैयार करने के लिए कुछ पानी घर ले आते हैं। उस दिन कद्दू-भट्ट के नाम से एक भोजन होगा, जिसे मिट्टी के चूल्हे पर कांस्य या मिट्टी के बर्तन, आम की लकड़ी का उपयोग करके पकाया जाता है। दूसरे दिन, वे पूरे दिन के लिए उपवास करते थे। वे सूर्यास्त के बाद धरती पर प्रार्थना करते हैं और उपवास तोड़ देते हैं अपने भोजन के बाद वे पानी के बिना 36 घंटों के लिए फिर से उपवास करते थे। वे तीसरे दिन नदी किनारे के घाट में संजय अर्घ्य प्रदान करते हैं। शाम में उन्होंने पांच गन्ना की छड़ के ऊपर दीपक जलाया जो पंचतंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। चौथे दिन वे बिहोनिया अराग की पेशकश करते हैं। भक्तों की छतप्रसाद होगी और उपवास और त्योहार खत्म होगा। छठ पूजा पर निबंध भारत पर्वों का देश है और यहाँ पर सभी त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। छठ पूजा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। मुख्य रूप से यह त्योहार बिहार में मनाया जाता है लेकिन धीरे यह भारत के सभी हिस्सों में मनाया जाने लगा है और इसके अलावा इसे विदेशों में भी मनाया जाता है। यह त्योहार कार्तीक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को विशेष रूप से मनाया जाता है। यर चार दिन तक चलने वाला त्योहार है जिसकी शुरूआत चतुर्थी से होती है और सप्तमी को इसका अंतिम दिन होता है। यह त्योहार सूर्य देव से जुड़ा हुआ है। इस पर्व पर महिलाएँ पति की लंबी आयु और संतान सुख की प्राप्ती के लिए व्रत रखती है। इस त्योहार से जुड़ी बहुत सी प्राचीन कथाएँ है जिनमें से कोई रामायण काल की है तो कोई महाभारत काल की। इस पर्व की तैयारी दिवाली के बाद ही बड़े उत्साह से कर दी जाती है। छठ पूजा के पहले दिन महिलाएँ चने की दाल, लोकी की सब्जी और रोटी आदि खाती है। दुसरे दिन वह रात को सिर्फ गुड़ की खीर खाती है जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन यानि कि षष्ठी के दिन वह निर्जला व्रत रखती है और अपनी गुँजाईश के अनुसार 11, 21 या 51 फलों का प्रसाद बाँस के डालिया में बाँधकर अपने पति या बेटे को दे देती है और नदी की तरफ चल पड़ती है। जाते जाते रास्ते में महिलाएँ छठी माता के गीत गाती हैं। नदी पर पहुँचक पंडित से पूजा करवाकर शाम को कच्चे दुध से डुबते हुए सूर्य को अर्ध्य देती हैं। अगले दिन उदय होते हुए सूर्य को भी कच्चे दुध से अर्ध्य दिया जाता है और फिर वह अपना व्रत तोड़ती है। छठ पूजा के बाद सभी लोग बहुत खुश नजर आते हैं और वहाँ पर दिवाली जैसा माहोल्ल होता है।
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